रामजन्म के समय को लेकर असमंजस का कारण अज्ञान

                                         


रामजन्म के समय को लेकर असमंजस का कारण अज्ञान


  रमेश दुबे 


मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जन्म के समय को लेकर असमंजस अज्ञान के कारण है। आधुनिक गणित और भौतिक शास्त्र का अध्ययन करके वैज्ञानिक बनने वाले विद्धान इस असमंजस को दूर नहीं कर सकते। भारतीय काल गणना जो ग्रहों और नकों की गति पर आधारित है उसके माध्यम से इस दुविधा को दूर किया जा सकता है। यह ज्योतिष गणित का विषय है। ज्योतिष विद्या को ब्रम्हा का तीसरा नेत्र कहा गया है। भारत को कालगणना पूर्ण रुपेण वैज्ञानिक और व्यवाहारिक है। कलाका स्वरुप काष्ठा, निमिष, कला, कल्प आदि परिभाषिक शब्दों द्वारा विर्वचित किया गया है। एक बार पलक गिरने में जो समय लगता है उसे निमेष कहा जाता है। 15 निमेष की एक काष्ठा 1 सूर्य की रश्मि को परमाणु को संक्रमित करने में जो समय लगता है वह काल का सूक्ष्मतम मान है। दो अणु का एक त्रसरण होता है। त्रसरेणु की एक त्रुटि 100 त्रुटि का एक वेध, 3 वेध का एक लव 1 लव का एक निमेष 13 निमेष का एक क्षण, 5 क्षण की एक काष्ठा। 30 काष्ठा की एक कला, 30 कला का एक मुहूर्त , 30 मुहूर्त का एक अहोरात्र,30 अहोरात्र के 3 पक्ष, 2 पक्ष का एक मास, 6 मास का एक अयन, 1 अयन दो प्रकार का है उत्तरायण और दक्षिणायन। उत्तरायण को देवताओं का दिन और दक्षिणायन को उनकी रात्रि कहा गया है। दो अयन का एक मानव वर्ष होता है। युगचार है। सत युग,त्रेता,द्वापर और कलियुगा इन चार युगों का एक महायुग होता है। जिस चतुर्युगी भी कहते हैं। युग के बाद काल गणना का इकाई है मन्वन्तर । एक मन्वन्तर में 71 महा युग होते है। मन्वन्तर से बडी इकाई है कल्प। एक कल्प में 14 मन्वन्तर होते हैं। एक कल्प यानि ब्रम्हाजी का एक दिन। एक कल्प में 1000 महायुग होते हैं। एक कल्प मममें 4 अरब 32 करोड वर्ष होते हैं। 41. . सत्य युग में 17,28000 वर्ष, चैता में 12,96000 वर्ष द्वापर में 8,64000 वर्ष और कलियुग 4,32,000 वर्ष होते हैं। एक महा युग में 4 लाख 32 हजार वर्ष होते हैं। यह भारत की ज्योतिषीय काल गणना है। इसके आधार पर भगवान श्री राम के जन्म के समय काल को निर्धारण होना चाहिए। वाल्मिकी रामयाण में भगवान श्री राम के जन्म के समय में ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का वर्णन है। उस समय के पर्यावरण और जीवों की प्रजातियों का भी विवेचन है। महार्षि वाल्मीकि त्रिकाल दर्शी और तत्वज्ञानी थे। उन्होंने रामायण की रचना श्री राम के जन्म से पूर्व की थी। महार्षि वाल्मीकि तपबल के कारण हैं दिव्य दृष्टि से संपन्न थे। सनातन धर्म की ऋषि हुआ परंपरा अप्रमेय है। ऋषि-महार्षि अपनी दिव्य दृष्टि से कई बीते हुए कल्पों में कब क्या हुआ और लंकापति आने वाले कल्पों में कब क्या होगा यह ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ थे। वेद,रामायण, महाभारत, पुराण इन्ही की रचनाएं है। इन पवित्र ग्रंथों में विशालकाय विज्ञान इतिहास, तत्वज्ञान के साथ-साथ अनेक विषयों की प्रमाणी जानकारी समाहित है। सनातन धर्म के आदि देश भारत में ज्ञान की यह जो निधि है वह विश्व में किसी के पास नहीं है। हमारे करीब विद्वानों को इसी पर गंभीर से शोध करना चाहिए। विश्व विद्ययालयों में जो दो पांच हजार वर्ष का इतिहास पढ़ाया जा रहा है। वह वास्तव में भारत का असली इतिहास है ही नहीं। आज तक चैनल में एक सीरियल आ रहा है ईश्वर की खोज। यह सीरियल तथ्यों के अनरूप नहीं है। भगवान श्रीराम के जन्म का समय इसमें ईसा से 5-6 हजार वर्ष बताया जा रहा है। यह गलत है। वायु पुराण के अनुसर भगवान श्री राम का अवतार 24 वें त्रेता में हुआ था। इस हिसाबसे श्रीराम का अवतार आज से करीब पौने दो करोड वर्ष पूर्व हआ। भारत की ज्योतीषीय कालगणना का यही निष्कर्ष है। श्रीराम का जन्म भगवान श्री कृष्ण के जन्म से काफी पर्व का है। श्री कृष्ण का। जन्म इसी महायुग के द्वापर में हुआ था। यह श्वेत वाराह कल्प का सातवां मन्वन्तर है। इस सातवें मन्वन्तर के 28 वें महा युग का यह अंतिम युग कलियुग चल रहा है। कलियुग के अभी 5108 वर्ष बीत चुके है। पश्चिम के वैज्ञनिक भी इस निष्कर्ष का प्रतिपादन कर चुके है कि कलियुग का प्रारंभ 5 हजार 108 वर्ष बीत चुके हैं। पश्चिम के वैज्ञानिक भी इस निष्कर्ष का परिपालन कर चुके हैं कि कलयुग का प्रारंभ 5 हजार 108 वर्षपूर्व हुआ था। वाल्मीकि रामायण में वर्णन आया है कि लंकापति रावण के महल के द्वारपर चार दांतों वाले हाथी खडे थे। ट्रिजटा नामक राक्षसी ने स्वप्न में देखा था कि भगवान श्री राम चार दांतों वाले विशालकाय हाथी पर सवार हैं। वैज्ञानिक चार दांतों वाले हाथियों को MASTONDONTOI DEA कहते हैं। वैज्ञानिक शोध से निचोड निकला है कि चार दांतों वाले हाथियों को प्रजाति पृथ्वीपर करीब पौने चार करोड वर्ष पूर्व पैदा हुई। हाथियों की यह प्रजाति डेढ़ करोड वर्ष पूर्व लुप्त हो गई।