रामायण के प्रचुर संदर्भ वेदों में सुरक्षित
रमेश दुबे .. वाल्मीकि रामायण के प्रभूत प्राचीनतम ऐतिहासिक संदर्भ वैदिक साहित्य में सुरक्षित हैं। ऋग्वेद से लेकर उपनिषदों . तक रामकथा के पात्रों की सूचना मिलती है। इसकी पुष्टि रामायण, महाभारत, पुराणा एवं तमाम इतिहास ग्रंथों से होती है। महर्षि वाल्मीकि रामायण वेद सम्मत ही है। गोस्वामी तुलसीदासजी ने अनेक स्थानों पर मानस को श्रुति सम्मत कहा है। भगवान श्रीराम की वंश परंपरा के पूर्व पुरुष इक्ष्वाकु का नाम ऋग्वेद में प्राप्त होता है। ऋग्वेद में कहा गया है कि जिसकी सेवा में धनयुक्त एवं प्रतापी इक्ष्वाकु की अभिवृद्धि होती है। यह कहकर श्रेष्ठ महाराज इक्ष्वाक का स्मरण किया गया है। .का स्मरण किया गया है। .. इनके ऐतिहासिक आख्यान का वर्णन रामायण महाभारत एवं पुराणों में हुआ है। • अथर्ववेद में भी इक्ष्वाकु का नाम आया है। संभालने इसी प्रकार शतपथ ब्राह्माण में भी इक्ष्वाकु का उल्लेख " वंशावलियां किया गया है। ये इक्ष्वाकु वैवस्वत मनु के सबसे बड़े पुत्र थे। अयोध्या महाराजा दशरथ का नाम भी ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में - भारत कहा गया है कि दशरथ के लाल रंग के चालीस घोड़े एक इतिहास सहस्त्र की श्रेणी का नेतत्व करते हैं। दशरथ स्वयं देवासुर मातापि संग्राम में गए थे। ऋग्वेद के इस मंत्र में दशरथ के नाम का का रहस्य भी स्पष्ट किया गया है। महाराजा दशरथ के रथ में दस • रथों के अश्वों की शक्ति निहित थी। वेदों में सुदास का वर्णन सनातन है। महाराजा रघु के पुत्र कल्माषपाद का दूसरा नाम सुदास था। प्रमाणिक महाराजा सागर के साठ हजार पुत्रों का उल्लेख अथर्ववेद में हुआ है। रघुवंश के महाप्रतापी महाराजा रघु का वर्णन भी विस्तार ऋग्वेद में मिलता हैकैकय नरेश अश्वपति का वर्णन भी के वैदिक ग्रंथों में हआ है। ये अश्वपति महाराजा दशरथ के में श्वसर और भारत के नाना थे। इनका उल्लेख शतपथ ब्राह्माण प्रतापी और छान्दोग्य उपनिषद में हुआ है। इसी प्रकार विदेहराज जनक की चर्चा भी वैदिक वांगमय में है। जनक का परिचय काल कृष्ण यजुर्वेद के तैतरीय ब्रह्मण में प्राप्त होता है। शतपथ ब्रह्मण. उसके एवं जैमिनी ब्रह्मण में भी महाराजा जनका का वर्णन मिलता है वैदिक ग्रंथों में विदेहराज जनक की पुत्री सीता का वर्णन की किया गया है। ऋग्वेद में कोष की आंघष्ठात्री देवी सीता को स्तुति की गई है। इसी प्रकार अथववेद में भी सीता का स्तवन किया गया है। सामवेद में भी सीता की स्तुति है। वैदिक साहित्य में राम का उल्लेख अनेक स्थलों पर हुआ है। यजुर्वेद - में सूर्यकुल में उत्पन्न राम का वर्णन आया है। ऋग्वेद में वेदों में सुरक्षित 3 सूर्यवीश राजा वेन के बाद राम नाम आया है। राम इतिहास में बड़े-बड़े यज्ञों के कर्ता के रूप में ख्यात हैं। प्रश्नोपनिषद में राम का वर्णन हिरण्यनाभ कौसल्या राजपुत्र के नाम से हुआ है। राम का एक नाम हिरण्यनाभ भी है। ऋग्वेद के एक मंत्र में संपूर्ण राम कथा का बीज भी निहित है। इस मंत्र में कहा गया है कि भद्र (श्रीराम), भद्रा (सीता) के.साथ वन में गए। पीछे से रावण आकर सीता को ले गया। अग्नि ने तेज स्वरूप पत्नी ..को श्रीराम के समक्ष प्रस्तुत को श्रीराम के समक्ष प्रस्तुत किया। वेदों में राम के वंश का ही संदर्भ ही आया हो, ऐसी बात नहीं है। रामायण में वर्णित राक्षसों को चर्चा भी वैदिक साहित्य में है। अथर्ववेद में रावण का स्पष्ट उल्लेख हुआ है। राक्षस त्रिशिरा का उल्लेख ऋग्वेद में हुआ है। वहीं कबंध की सूचना हमें ऋग्वेद से प्राप्त होती है। राम के काल में वेद के बड़े-बड़े मंत्र दृष्टा ऋषि विद्यमान थे। विश्वामित्र, वशिष्ठ, अगस्त्य आदि श्रीराम के अवतार के समय थे। रामायण युग में महर्षियों का मंत्र द्रष्टा स्वरूप अत्यंत प्रखर था। रामायण की संस्कृति यज्ञों की ही महा संस्कृति है। उस युग में मंत्रों के बड़े-बड़े तत्वदर्शी महर्षि पूरे भारतवर्ष यानि आर्यावर्त में वैदिक ज्ञान की परमज्योति का अवस्था में स्वाभाविक है कि रामायण के संदर्भ वेदों में प्रतिफलित हुए। श्रीराम वैवस्वत मनु के वंश में ही अवतरित हुए। इस वंश में अनेक महातेजस्वी और . प्रतापी नरपति हुए। वर्तमान श्वेत बाराह कल्प में यह वैवस्वत मनु का ही काल चल रहा है। श्वेत वाराह कल्प से पहले जो कल्प था उसके अंत में राजर्षि सत्यव्रत ने भगवान की तपस्या से ज्ञान प्राप्त किया था। वही वर्तमान श्वेत वाराह कल्प में वैवस्वत मनु हुए। उनके वंश में निमि राजा शांति, नाभाग, अम्बरीप, मान्धाता, त्रिशंकु, हरिशचंद्र, भागीरथ, दीर्घबाहु, रघु, अज जैसे प्रतापी राजा हुए। महाराज दशरथ अज के पुत्र थे। देवताओं की प्रार्थना पर महाप्रतापी महारज दशरथ के यहां साक्षांता परम . ब्रह्म परमात्मा भगवान श्री हरि ने राम, लक्ष्मण, भरत औरशत्रुघ्न के रूप में जन्म लिया। ये चारों महा विष्णु थे।